बचपन

जीवन के वह स्वर्णिम पल
मेरे जीवन के प्रारंभिक १८ साल जबलपुर नामक छोटे से शहर में बीते हैं
जो कि अत्यंत सुखद एवं आनंदमय रहे हैं.
स्कूल के वह दिन बड़े अनोखे लगते हैं अब.
ऐसा नहीं है कि आज मुझे इस समय में किसी प्रकार का कोई दोष दिखाई पड़ता हो
पर बचपन तो है ही ऐसी बला जो बीत जाने पर ही याद आती है.
याद तो मुझे बहुत कुछ है.. पर कुछ चीजे ऐसी होती हैं जो हर किसी के जीवन पर छाप छोड़ती हैं.
यह वही रोज़मर्रा कि आम बातें हैं जो लगभग हर मेरे हमउम्र नौजवान को याद आती होगी और कहलवाती होगी कि
"काश वोह दिन फिर कभी लौट आयें?"
सुबह उठकर रोज़ किताब खोलकर जोर जोर से पढ़कर मुहल्ले वालों को जगाना,
फिर माँ कि डांट सुनकर नहाने जाना और हड़बड़ी में स्कूल के लिए निकलना.
एक साइकल थी जो बिना चू के आगे न बढ़ती थी.
उसी साइकल पर सवार दोस्तों के घरों से होते हुए, उन्हें लेते हुए.. ७ किलोमीटर का वह सफ़र!
स्कूल पहुचकर कभी गेंद तो कभी पत्थर से फुटबॉल खेलना.
रोज़ मैडम से डांट खाना और शर्मा जी से हांतों पर संटी खाना.
दर्द तो होता था पर फिर उनकी नक़ल उतारने से जो दोस्तों कि वाहा-वाही मिलती, वह उस दर्द को दबा देती.
हमारे शर्मा जी जिस बुद्धिजीवी किसम के व्यक्ति थे, जीवन में शायद ही फिर किसी से मेरा सामना कभी हुआ हो.
स्कूल के संचालक, एक शवेतवरणीय सज्जन 'जॉर्ज पी. ए' थे, जो कि बगल के ही संत. जोसेफ चर्च के पादरी थे.
वे हमेशा हम बच्चो से हसी-ख़ुशी मिलते और अत्यंत स्नेह पूर्वक हमसे बात भी करते.
उनका वह गोलाकार चेहरा, उनकी टाक जो सुबह से शाम तक चमकती और चांदनी रातों में तो अत्यंत मनमोहक लगती,
उनकी टूटी-फूटी हिंदी, और उनका लहराता हुआ गाउन...
आगे का समय मिलने पर लिखने बैठुंगा

10 comments:

Manasi Parikh said...

so sweet :) reminds me of my old hindi essays and even some storybooks. took me a while to read this though! reading hindi after SO long

TEESTA DAS said...

very very well written!!you must be an acer at hindi in ur bachpan!!hehehe!!you sound very grown up,dadaji!

Pratik Ghosh said...

kuchbi..!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

जाल जगत पर आपका स्वागत है।

Unknown said...

aap ne to mujhe voh gana yaad dila diya.....koi lautade mere beete hue din-----------badhai
-albela khatri

रचना गौड़ ’भारती’ said...

मेरे ब्लोग पर आने के बाद देखें शायद कुछ मिल जाए। आपका स्वागत है।

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

Good description of yr chilhood days at Jabalpur.U r right that these moments are for ever and they go throughout life.
I am happy that u r doing some course at National Institute.Kindly tell me the website of yr institute and information regarding admission.
My email is bksrewa@gmail.com
yours thankfully
Dr.Bhoopendra

उम्मीद said...

आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है

गार्गी
www.abhivyakti.tk

Sanjay Grover said...

हुज़ूर आपका भी ...एहतिराम करता चलूं .......
इधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं ऽऽऽऽऽऽऽऽ

ये मेरे ख्वाब की दुनिया नहीं सही, लेकिन
अब आ गया हूं तो दो दिन क़याम करता चलूं
-(बकौल मूल शायर)

Anonymous said...

ooo surooor